हो रही है इस तसव्वुर से परेशानी मुझे आइना उन को उदासी देगा हैरानी मुझे ख़ून रलवाती है हम-जिंसों की नादानी मुझे वो ख़ता करते हैं होती है पशेमानी मुझे हो गया है आज हर इंसाँ ज़रूरत का ग़ुलाम अब किसी तलवार पर मिलता नहीं पानी मुझे ये हुआ अक़्ल-ओ-जुनूँ की जंग का रद्द-ए-अमल हुक्मराँ मिलती है हर बस्ती पे वीरानी मुझे जब हिक़ारत से किसी को देखता है कोई शख़्स क्या कहूँ होती है जो तकलीफ़-ए-रूहानी मुझे जानता हूँ ज़िद न करना पूछने की दोस्तो किस के दर पर ख़म मिली है किस की पेशानी मुझे सर झुके तो बस न उठने की क़सम खा कर झुके मशवरा ये दे रही है मेरी पेशानी मुझे आज के ज़ोहरा-जमालों का तमद्दुन देख कर सर-निगूँ मिलती है बू-ए-गुल की उर्यानी मुझे इम्तिहाँ लेती है क़ुदरत हैसियत को देख कर क़हक़हे उन को मिले हैं अश्क-अफ़्शानी मुझे चाँद तारों के जहाँ में घर बनाने के लिए आज-कल दुनिया नज़र आती है दीवानी मुझे अब किसी कश्ती को दरिया में कोई ख़तरा नहीं ख़ेमा-ज़न मिलती है हर साहिल पे तुग़्यानी मुझे मय-कदे की बात ही क्या पूछते हो दोस्तो मोहतरम लोगों के माथे पर मिला पानी मुझे इश्क़ तो इंसानियत के इम्तिहाँ का नाम है हो 'निहाल' इस इम्तिहाँ से क्यों परेशानी मुझे