हो तर्क किसी से न मुलाक़ात किसी की यारब न बिगड़ जाए बनी बात किसी की पाँव को जो फैला के सर-ए-शाम से सोए क्या जाने वो किस तरह कई रात किसी की फ़रमाइए क्यूँ कर वो सहे आप की गाली उठ सकती न हो जिस से कड़ी बात किसी की फ़रमाइशें तुम रोज़ करो शौक़ से लेकिन ये जान लो थोड़ी सी है औक़ात किसी की मुमकिन है कि समझे न 'हफ़ीज़' आप की चालें शायर से भी चलती है कहीं घात किसी की