हुए इश्क़ में इम्तिहाँ कैसे कैसे पड़े मरहले दरमियाँ कैसे कैसे रहे दिल में वहम-ओ-गुमाँ कैसे कैसे सरा में टिके कारवाँ कैसे कैसे घर अपना ग़म-ओ-दर्द समझे हैं दिल को बने मेज़बाँ मेहमाँ कैसे कैसे शब-ए-हिज्र बातें हैं दीवार-ओ-दर से मिले हैं मुझे राज़-दाँ कैसे कैसे दिखाता है दिन-रात आँखों को मेरी सियाह-ओ-सफ़ेद आसमाँ कैसे कैसे जो का'बे से निकले जगह दैर में की मिले उन बुतों को मकाँ कैसे कैसे फ़रिश्ते भी घायल हैं तीर-ए-अदा के निशाना हुए बे-निशाँ कैसे कैसे जो ख़ंजर रुका चढ़ गई उन की तेवरी वो बिगड़े दम-ए-इम्तिहाँ कैसे कैसे इधर मौत उधर वो दम-ए-नज़अ' आए इकट्ठा हुए मेहरबाँ कैसे कैसे कभी बिजली तड़पी कभी आँधी आई बढ़े दुश्मन-ए-आशियाँ कैसे कैसे मिरे जुर्म महशर में करती है इफ़्शा मिरे मुँह पे मेरी ज़बाँ कैसे कैसे मोहब्बत के हाथों हुए ज़ुल्म क्या क्या गए जान से नौजवाँ कैसे कैसे निशाँ मिट गए नाम फिर भी हैं बाक़ी जवाँ थे तह-ए-आसमाँ कैसे कैसे करूँ याद किस किस को किस किस को रोऊँ 'हफ़ीज़' उठ गए मेहरबाँ कैसे कैसे