होगा क्या चाँद-नगर सोचते हैं हम ब-उनवान-ए-दिगर सोचते हैं अपना ज़ाहिर में कोई जुर्म न था क्यूँ हुए शहर-बदर सोचते हैं शाख़-दर-शाख़ हैं गुम-सुम ताइर सर को नेहुड़ाए शजर सोचते हैं कोई बतलाए ये क्या वादी है दम-ब-ख़ुद कोह हजर सोचते हैं जाने क्यूँ मुझ से बिछड़ कर 'मुंज़िर' वो भी मानिंद-ए-बशर सोचते हैं