न होते शाद आईन-ए-गुलिस्ताँ देखने वाले फ़साना भी अगर पढ़ लेते उनवाँ देखने वाले हलाकत-ख़ेज़ ईजादों पे दुनिया फ़ख़्र करती है कहाँ हैं इर्तिक़ा-ए-नौ-ए-इंसाँ देखने वाले जो मुमकिन हो तुम अपने हाथ की रेखा खुरच डालो कि हम हैं तो सही ख़्वाब-ए-परेशाँ देखने वाले ये रख़्ने हैं ये दर हैं ये तिरे अज्दाद के सर हैं इधर आ कतबा-ए-दीवार-ए-ज़िंदाँ देखने वाले तुलू-ए-आफ़्ताब-ए-आगही क्या ख़ाक देखेंगे हिक़ारत से मिरा चाक-ए-गरेबाँ देखने वाले तो फिर कैसी नज़र-बंदी तिलसिमात-ए-तदब्बुर क्या जो ख़ुद को देख लें जश्न-ए-चराग़ाँ देखने वाले शिकस्त-ए-ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा मुक़द्दर ही सही 'ग़ौसी' उन्हें देखेंगे फिर भी ता-ब-इम्काँ देखने वाले