होगी ख़बर जो हम ने सुनी बेश-ओ-कम ग़लत खाओ न बार-बार ख़ुदा की क़सम ग़लत ज़ुल्फ़ों से कुछ लगा है पता कुछ लबों से आज होता नहीं क़यास जो करते हैं हम ग़लत देता है क्यों फ़रेब कि मैं भेद पा गया मुझ पर करम ग़लत है 'अदू पर सितम ग़लत आते हैं मय-कदे से वो साग़र लिए हुए निकला जनाब-ए-शैख़ पे आख़िर भरम ग़लत सौदा यही है दीदा-ओ-दिल को करूँ ख़राब ऐ अश्क-ए-ख़ूँ बराए-ख़ुदा तू न थम ग़लत पहुँचा उसे ये हाल मिरा बाद-ए-सुब्ह-दम लेता है दम मरीज़-ए-जफ़ा दम-ब-दम ग़लत उलझा है ऐसा दिल कि न निकलेगा फिर कभी होती है उन की ज़ुल्फ़-ए-दुता ख़म-ब-ख़म ग़लत क़िबला बना के लाए थे रोज़-ए-अज़ल से हम सज्दा किया न था तुझे हम ने सनम ग़लत तेरा ख़याल हिज्र में इस का अनीस है होता है तेरी याद में 'शैदा' का ग़म ग़लत