जब से चमन में अपना हुआ आशियाँ उदास फ़स्ल-ए-बहार में भी रहा गुल्सिताँ उदास बज़्म-ए-नशात ऐश-ओ-तरब के मआल से होना था हो रहा है दिल-ए-शादमाँ उदास अल्लाह रे ये दौर-ए-तरक़्क़ी का मद्द-ओ-जज़्र है इर्तिक़ा-ए-अक़्ल से सारा जहाँ उदास इक जाम-ए-इल्तिफ़ात की ख़ातिर ऐ साक़िया तकते रहे हैं तेरी तरफ़ मय-कशाँ उदास वो क्या पयाम-ए-ज़ीस्त हमें देंगे दोस्तो जिन के ख़याल-ओ-फ़िक्र कि है दास्ताँ उदास ओझल नज़र से मंज़िल-ए-मक़्सूद देख कर इक मीर-ए-कारवाँ से हुआ कारवाँ उदास हो कर शरीक-ए-बज़्म तो 'हमदम' कभी था ख़ुश अब जाने क्या हुआ है कि वो है यहाँ उदास