होनी हूँ किसी हाल में टलने की नहीं हूँ मैं वक़्त के हाथों से निकलने की नहीं हूँ ये बात सही टूट के बिखरी तो बहुत हूँ ये बात ग़लत है कि सँभलने की नहीं हूँ लगता है जड़ें फैल गई हैं मिरी तुझ में उखड़ी तो कहीं फूलने-फलने की नहीं हूँ पहचान ज़माने में यही है मिरी अब मैं किरदार कहानी में बदलने की नहीं हूँ मैं हूँ पस-ए-मंज़र की भी तकमील में शामिल बस इस लिए मंज़र से निकलने की नहीं हूँ बे-ख़ौफ़ जो सच बोलता रहता है हमेशा वो आइना अपना मैं बदलने की नहीं हूँ वहशत है बहुत ख़ून में 'नुसरत' इसी डर से सहरा की तरफ़ जा के टहलने की नहीं हूँ