इश्क़ में मजनूँ-ओ-फ़रहाद नहीं होने के ये नए लोग हैं बर्बाद नहीं होने के ये जो दा'वे हैं मोहब्बत के अभी हैं जानाँ और दो-चार बरस बाद नहीं होने के क्या कहा तोड़ के लाओगे फ़लक से तारे देखो इन बातों से हम शाद नहीं होने के नक़्श हैं दिल पे मिरे अब भी तुम्हारे वा'दे ख़ैर छोड़ो वो तुम्हें याद नहीं होने के घर लिए फिरती हूँ हर वक़्त तुम्हारे पीछे तुम मगर वो हो कि आबाद नहीं होने के मनअ' है रस्म-ओ-रिवाजों से बग़ावत करना ये सबक़ मुझ को मगर याद नहीं होने के हम ने ख़ुद पहनी है 'नुसरत' ये वफ़ा की ज़ंजीर हम तो ख़ुद ही कभी आज़ाद नहीं होने के