होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए आए तो सही बर-सर-ए-इलज़ाम ही आए हैरान हैं लब-बस्ता हैं दिल-गीर हैं ग़ुंचे ख़ुश्बू की ज़बानी तिरा पैग़ाम ही आए लम्हात-ए-मसर्रत हैं तसव्वुर से गुरेज़ाँ याद आए हैं जब भी ग़म-ओ-आलाम ही आए तारों से सजा लेंगे रह-ए-शहर-ए-तमन्ना मक़्दूर नहीं सुब्ह चलो शाम ही आए क्या राह बदलने का गिला हम-सफ़रों से जिस रह से चले तेरे दर-ओ-बाम ही आए थक-हार के बैठे हैं सर-ए-कू-ए-तमन्ना काम आए तो फिर जज़्बा-ए-नाकाम ही आए बाक़ी न रहे साख 'अदा' दश्त-ए-जुनूँ की दिल में अगर अंदेशा-ए-अंजाम ही आए