होश बाक़ी न रहा हाथ से ईमान गया जो गया बज़्म से तेरी वो परेशान गया उन से दिल मिल गया उल्फ़त का मज़ा जान गया वो मुझे अच्छी तरह मैं उन्हें पहचान गया जिन के दम से थी बहार उठ गए वो अहल-ए-चमन दिल के बहलाने का अब आख़िरी सामान गया आरज़ू दीद की पूरी न हुई ता-दम-ए-मर्ग तेरा आशिक़ तिरे कूचे से पुर-अरमान गया हम तड़पते रहे और आप ने पूछा भी नहीं क़स्में क्या हो गईं वो सब कहाँ अरमान गया ऐसा नाराज़ हुआ ख़्वाब में भी आता नहीं बात करने का भी उस बुत से अब इम्कान गया सर तिरी नज़्र किया हो गई तकमील-ए-वफ़ा ऐ सितमगर मिरे सर से तिरा एहसान गया ज़ेर-ए-तुर्बत भी तड़पती रही मेरी मय्यत दिल से मेरे न तिरे इश्क़ का तूफ़ान गया पाँव शल हो गए लेकिन न पता तेरा मिला जुस्तुजू में तिरी मैं ता-हद-ए-इम्कान गया ज़िक्र वा'दे का ज़बाँ पर जो 'फ़ज़ा' की आया बात इतनी सी थी लेकिन वो बुरा मान गया