हम उट्ठे तो क्या रौनक़-ए-मय-ख़ाना वही है साक़ी वही बादा वही पैमाना वही है फ़रज़ाना जिसे कहते हो दीवाना वही है दीवाना जिसे समझे हो फ़रज़ाना वही है हुस्न और मोहब्बत का है मौज़ूअ' पुराना उन्वान बदलते रहे अफ़्साना वही है इस हुस्न-ए-जहाँ-ताब पे मरते हैं हज़ारों देखो जिसे इस हुस्न का परवाना वही है दिल दे कोई जाँ दे कोई इज़्ज़त कोई दौलत जो हुस्न को मक़्बूल हो नज़राना वही है जो कुल में है वो जुज़ में है जो जुज़ है वही कुल आईने के टुकड़ों में परी-ख़ाना वही है जिस दिल में ख़ुदा रहता था तुम आन बसे हो काबा जो था कल आज सनम-ख़ाना वही है दिन-रात जो आँखों से बहे पानी है पानी जो दुख में किसी के बहे दुर्दाना वही है चटका भी तो दिल की तरह आवाज़ न उभरी जो ख़ाक से मेरी बना पैमाना वही है राहत में तो मा'बूद का सब करते हैं सज्दा हाँ दुख में करे याद तो शुक्राना वही है क्या बात है गुलशन की 'फ़ज़ा' क्यों नहीं बदली सय्याद वही दाम वही दाना वही है