होश-ओ-हिम्मत-आज़मा शान-ए-तजम्मुल क्यों नहीं वो किसी का आश्नायाना तग़ाफ़ुल क्यों नहीं ज़ब्त की तल्क़ीन इज़्हार-ए-तमन्ना के लिए होश खोने के लिए शर्त-ए-तहम्मुल क्यों नहीं अंदलीब-ए-ख़ुद-निगर क्यों रात-दिन आह-ओ-बुका एहतिराम-ए-जज़्बा-ए-ख़ुद्दारी क्यों नहीं शाद हो महबूब तो नाशाद कोई किस लिए ख़ंदा-ए-गुल बाइस-ए-तसकीन-ए-बुलबुल क्यों नहीं ढूँढती है आँख फिर वो सई-ए-बेगाना-वशी दावत-ए-अरमाँ ब-अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल क्यों नहीं शर्म का ले कर सहारा वो नज़र उट्ठी तो क्या ये शरार-ए-बर्क़ आज़ाद-ए-तवस्सुल क्यों नहीं जो निगाहें सर्फ़-ए-ताराज-ए-शुऊ'र-ओ-होश थीं आज वो ग़ारत-गर-ए-सब्र-ओ-तहम्मुल क्यों नहीं जाम ख़ाली हो तो रंगीनी को उस की क्या करें बादा-ए-गुलफ़ाम से पुर साग़र-ए-गुल क्यों नहीं वो सुकूँ वो आश्ती वो सरख़ुशी पाएँ कहाँ ज़िंदगी तस्वीर-ए-फ़िरदौस-ए-तख़य्युल क्यों नहीं