इस का तो ग़म नहीं दिल-ए-दीवाना जल गया ज़ालिम ये ग़म है तेरा सनम-ख़ाना जल गया बेदाद रश्क से दिल-ए-दीवाना जल गया सद-हैफ़ हम न जल गए परवाना जल गया शायद सफा-ए-हुस्न में मुज़्मर थीं रंजिशें आग़ोश-ए-इल्तिफ़ात में परवाना जल गया साक़ी की चश्म-ए-नाज़ से निस्बत है क्या उसे बस इक निगाह-ए-गर्म में पैमाना जल गया हंगामा-ए-हयात हुआ ख़त्म उस के साथ अब कोई क्या जिए दिल-ए-दीवाना जल गया आतिश सरिश्त-ए-शम्अ है या है इताब-ए-हुस्न हम इतना जानते हैं कि परवाना जल गया तेरे करम से दिल पे जो गुज़री वो क्या कहें सहबा-ए-आतिशीं से ये पैमाना जल गया