होशियारी दिल-ए-नादान बहुत करता है By Ghazal << जाम-ए-तही लहराया हम ने दुआ के साथ गया इख़्तियार ... >> होशियारी दिल-ए-नादान बहुत करता है रंज कम सहता है ए'लान बहुत करता है रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़ कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है आज कल अपना सफ़र तय नहीं करता कोई हाँ सफ़र का सर-ओ-सामान बहुत करता है Share on: