होश्यार कर रहा है गजर जागते रहो ऐ साहिबान-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र जागते रहो दश्त-ए-शब-ए-सियाह में सुनते हैं शब-परस्त रोकेंगे कारवान-ए-सहर जागते रहो ज़ुल्मत कहीं न कर दे उजाले को दाग़-दार ले कर चराग़-ए-दीदा-ए-तर जागते रहो सोए नहीं कि डूब गई नब्ज़-ए-काएनात बोझल हो लाख आँख मगर जागते रहो ख़्वाबीदा अपने चाहने वालों को देख कर मुमकिन है लौट जाए सहर जागते रहो