होते ही जवाँ हो गए पाबंद-ए-हिजाब और घूँघट का इज़ाफ़ा हुआ बाला-ए-नक़ाब और जब मैं ने कहा कम करो आईन-ए-हिजाब और फ़रमाया बढ़ा दूँगा अभी एक नक़ाब और पीने की शराब और जवानी की शराब और हुश्यार के ख़्वाब और हैं मदहोश के ख़्वाब और गर्दन भी झुकी रहती है करते भी नहीं बात दस्तूर-ए-हिजाब और हैं अंदाज़-ए-हिजाब और पानी में शकर घोल के पीता तो है ऐ शैख़ ख़ातिर से मिला दे मिरी दो घूँट शराब और साक़ी के क़दम ले के कहे जाता है ये शैख़ थोड़ी सी शराब और दे थोड़ी सी शराब और 'साइल' ने सवाल उस से किया जब भी ये देखा मिलता नहीं गाली के सिवा कोई जवाब और