हुआ अश्क-ए-गुलगूँ बहार-ए-गरेबाँ ब-रंग-ए-रग-ए-गुल है तार-ए-गरेबाँ रहे है सदा चाक मातम-कदा में तहय्युर नहीं इख़्तियार-ए-गरेबाँ कभू हाथ दामन तक उस के न पहुँचा चे-जाए कि क़ुर्ब-ओ-जवार-ए-गरेबाँ तिरी देख आँखें ख़जिल होगी नर्गिस झुका चश्म को है दो-चार-ए-गरेबाँ बने मौज रो आस्तीं गर निचोड़ूँ हो गिर्दाब हर जा फ़िशार-ए-गरेबाँ सबा कब उठाते हैं जूँ निकहत-ए-गुल सुबुक-रूह गर्दन पे बार-ए-गरेबाँ सुपुर्द हम ने अब नासेहा कर दिया है ब-दस्त-ए-जुनूँ कारोबार-ए-गरेबाँ जहाँ में है ख़ुर्शीद से सुब्ह रौशन कि आता है तिक्मा ब-कार-ए-गरेबाँ गले में है चम्पा कली या किसू के हैं लख़्त-ए-जिगर हम-कनार-ए-गरेबाँ लगाई नहीं उस ने गोटे की मग़ज़ी हुई बर्क़ आ कर निसार-ए-गरेबाँ नहीं तौक़ पहने है कुमरी कि है अब ये ज़ेब-ए-गुलू-बंद ओ हार-ए-गरेबाँ गुलिस्ताँ में ये मोतकिफ़ है जो अब है सर-ए-ग़ुंचा सोहबत बरार-ए-गरेबाँ 'नसीर' अब यहाँ चश्म-ए-सोज़न है महरम ज़-सर-रिश्ता-हाए वक़ार-ए-गरेबाँ