हुआ दिल का हाल अबतर तुझे याद करते करते मिरी जाँ निकल न जाए कहीं आह भरते भरते मिरी आरज़ू-ए-दिल को नई ज़िंदगी मिली है कि अभी अभी बचे हैं मिरे ख़्वाब मरते मरते तुझे भूलने की ख़ातिर भी है एक उम्र लाज़िम कटी एक उम्र मेरी तुझे याद करते करते हुई मौत जब मुक़ाबिल मुझे तुम ही याद आए रहे तुम ही जान-ए-अरमाँ मिरी जान मरते मरते जो किसी ने मुझ से पूछी मिरी आख़िरी तमन्ना तिरा नाम ही तो आया मिरे लब पे डरते डरते ये था किस को इल्म यारो ये भला किसे ख़बर थी कोई जी उठेगा इक दिन तिरे ग़म में मरते मरते इसी ख़ौफ़ से कि तुझ को कहीं भूल ही न जाऊँ तुझे याद कर रही हूँ उसे याद करते करते