हुआ है अहल-ए-साहिल पर असर क्या तुझे ऐ डूबने वाले ख़बर क्या वही है चश्म-ए-नर्गिस का तहय्युर नहीं गुलशन में कोई दीदा-वर क्या सफ़ीना क्यूँ तह-ए-गिर्दाब आया तलातुम-ख़ेज़ मौजों को ख़बर क्या निगाह-ए-लुत्फ़ का मम्नून है दिल मगर ये पुर्सिश-ए-बार-ए-दिगर क्या न जाना जिस ने राज़-ए-मर्ग-ओ-हस्ती वो क्या समझे कि है तेरी नज़र क्या बहुत दुश्वार थी राह-ए-मोहब्बत हमारा साथ देते हम-सफ़र क्या सितारों की भी उम्रें हो गईं ख़त्म न होगा क़िस्सा-ए-ग़म मुख़्तसर क्या सहर अपनी न अपनी शाम ऐ 'नक़्श' किसी मजबूर के शाम-ओ-सहर क्या