हुआ है न होगा ज़माना किसी का उठाना किसी को गिराना किसी का कई रहनुमा थे अलावा भी दिल के मगर हम ने कहना न माना किसी का तअल्लुक़ कहाँ ज़िंदगी से हमारा तआ'रुफ़ है बस ग़ाएबाना किसी का मुक़द्दर ही अव्वल मुक़द्दर ही आख़िर न पानी किसी का न दाना किसी का जो बाक़ी बचेंगे वो कैसे जिएँगे अगर हो ही जाए ज़माना किसी का बिना वज्ह-ए-अज़्मत नज़र में सभी की जो किरदार था मुजरिमाना किसी का ज़माने को बर्दाश्त होता नहीं है नया कोई पौदा लगाना किसी का बहुत दर्द देता है 'परवेज़' 'अख़्तर' मुसलसल हमें आज़माना किसी का वहाँ पर हैं 'परवेज़' अब हम जहाँ पर न आना किसी का न जाना किसी का