हुआ है तौर-ए-बर्बादी जो बे-दस्तूर पहलू में

हुआ है तौर-ए-बर्बादी जो बे-दस्तूर पहलू में
दिल-ए-बेताब को रहता है ना-मंज़ूर पहलू में

अजब दिल को लगी है लौ अजब है नूर पहलू में
किया है इश्क़ ने रौशन चराग़-ए-तूर पहलू में

कहा जो मैं ने मेरे दिल की इक तस्वीर खिंचवा दो
मँगा कर रख दिया इक शीशा चकनाचूर पहलू में

ख़ुशी हो हो के उल्फ़त में जो बार-ए-ग़म उठाता है
दिल-ए-शैदा है या है इश्क़ का मज़दूर पहलू में

हवस है दिल को तेरे हाथ से मजरूह होने की
लगा दे इक छुरी ऐ क़ातिल-ए-मग़रूर पहलू में

हम-आग़ोशी से जब से यार ने पहलू-तही की है
उसी दिन से हुई है बे-कली मामूर पहलू में

तिरी तस्वीर जब मैं ढूँडने उठता हूँ जन्नत में
बिठा लेती है मिन्नत कर के मुझ को हूर पहलू में

तड़प जाता है दिल तेरी जुदाई याद आती है
चमक जाता है या-रब किस परी का नूर पहलू में

तसद्दुक़ तुझ पे जिस दम नज्द में हो जाएगा मजनूँ
जगह देगा तिरा दीवाना-ए-मग़्फ़ूर पहलू में

ख़दंग-ए-नाज़ की आमद पर आमद इस में रहती है
ये बाब-ए-दिल-कुशा है या कि है नासूर पहलू में

इलाही मेरे उस के वो हम-आग़ोशी की सूरत हो
कि जैसे दिल की है पेचीदगी मशहूर पहलू में

हुआ इस दर्जा ग़लबा उस पे ठंडी ठंडी साँसों का
कि आख़िर दिल हमारा हो गया काफ़ूर पहलू में

नई तीर-ए-लब-ए-माशूक़ ने की रख़्ना-पर्दाज़ी
तसल्लुत तो किया दिल में हुआ नासूर पहलू में

बराबर अपने बैठे देखा है यूसुफ़ को रूया में
ख़ुदा चाहे तो आ बैठे वो रश्क-ए-हूर पहलू में

मुस्लिम उस के होने की 'शरफ़' तदबीर बतलाओ
पड़ा है मुद्दतों से शीशा-ए-दिल चूर पहलू में


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