भरे ज़ख़्म फिर ताज़ा दम देखते हैं अजब दोस्तों के करम देखते हैं कोई लश्कर-ए-फ़ातेहीं जा रहा है फ़ज़ाओं में ऊँचे अलम देखते हैं ख़याल-ए-सनम भी जमाल-ए-सनम है अब इस तौर रू-ए-सनम देखते हैं बनी क़त्ल गाहें ये गलियाँ ये कूचे अजब मौत का रक़्स हम देखते हैं कहीं पल रहे हैं अमीरों के कुत्ते कहीं मुफ़्लिसी के सितम देखते हैं उतर कर फ़लक से सितारे भी 'शाफ़ी' तिरी ज़ुल्फ़ का पेच-ओ-ख़म देखते हैं