हुआ जब टूटना अबतर नवा बे-सूद शीशे का उठा शहर-ए-क़ज़ा में मुद्दआ' ना-बूद शीशे का कि बस बादा-कशी मतलब तवाँ हर जा है शीशे की था कब मर्ग़ूब था इदराक याँ मरदूद शीशे का नफ़स मर्ग-ए-नफ़स होता है जूँ शीशे की ख़िल्क़त में असर बे-लौस होता है जिधर महदूद शीशे का किसू ख़ालिक़ का दावा कर गया फिर मर गया इंसाँ ख़ुदाई कर नहीं सकता कभी नमरूद शीशे का इबारत मुंतक़िल रहती है फिर पर्वरदिगाराँ से कहीं बुत है तू पत्थर का कहीं मा'बूद शीशे का 'अबाँ' को तुम कहो इंसाँ कहो इंसाँ को तुम शीशा कहो मौजूद इंसाँ तो कहो मौजूद शीशे का