हुआ जो उन की ख़मोशी से कुछ मलाल मुझे जवाब देने लगी ताक़त-ए-सवाल मुझे किसी के दिल से किसी की नज़र से गिरता हूँ सँभालना है तो ऐ आसमाँ संभाल मुझे उमीद-ए-बोसा है फिर भी अगरचे ये है यक़ीं बहुत ज़लील करेगा मिरा सवाल मुझे सदा-ए-नाला शब-ए-वस्ल भी न दिल से गई पुकारती थी ये हसरत मिरी निकाल मुझे पिला दे बज़्म में साक़ी उसे शराब इतनी वो मस्त-ए-नाज़ कहे मुझ से तू सँभाल मुझे शिकायतों से मोहब्बत की और क्या हासिल कुछ इंफ़िआल तुम्हें हो कुछ इंफ़िआल मुझे असीर-ए-हल्क़ा-ए-काकुल न मैं हुआ ऐ 'दाग़' मिरे ख़ुदा ने बचाया है बाल-बाल मुझे