हुई आबाद वीरानी हमारी कोई समझे परेशानी हमारी अज़ल को वक़्त ही कितना हुआ है चली जाएगी हैरानी हमारी उसे हम से गुरेज़ाँ ही न कर दे ये इस दर्जा फ़रावानी हमारी तुम्हारी ख़ुश-लिबासी के मुक़ाबिल जो आए चाक-दामानी हमारी ग़ज़ल को जीने वाले जानते हैं बहुत मुश्किल है आसानी हमारी