हुई दिल टूटने पर इस तरह दिल से फ़ुग़ाँ पैदा कि जैसे शम्अ' के बुझने से होता है धुआँ पैदा रहा साबित-क़दम यूँ ही अगर अज़्म-ए-सफ़र अपना करेगी ख़ुद रह-ए-दुश्वार ही आसानियाँ पैदा हर इक ता'मीर ख़ुद अपनी तबाही साथ लाती है न गिरती बर्क़ गर होती न शाख़-ए-आशियाँ पैदा मिरी ख़्वाहिश कि इक सज्दा मिटा दे नाम-ए-पेशानी तिरी ख़्वाहिश हो पेशानी पे सज्दों का निशाँ पैदा वो जिन की मौत पर रोते हैं बरसों जाम-ओ-पैमाना अब ऐसे बादा-कश होते हैं ऐ साक़ी कहाँ पैदा ज़रूरत क्या करें हम जुस्तजू-ए-आस्ताँ ऐ दिल सलामत ज़ौक़-ए-सज्दा आप होगा आस्ताँ पैदा नज़र में जिन की रंगीनी तबीअ'त में है रानाई वो कर लेते हैं 'फ़ाज़िल' दश्त में भी गुलिस्ताँ पैदा