हुए हैं बंद दिशाओं के सारे रस्ते आ अँधेरा छाने लगा लौट कर परिंदे आ मैं तेरी सारी तमाज़त को जज़्ब कर लूँगा तू आफ़्ताब कभी मेरे दिल में बुझने आ कभी दिखा दे वो मंज़र जो मैं ने देखे नहीं कभी तो नींद में ऐ ख़्वाब के फ़रिश्ते आ यहाँ तो कब से अंधेरों में ग़र्क़ है दुनिया इधर जो आ तो सितारों की शाल ओढ़े आ न चुपके चुपके सुलग जी को अपने हल्का कर तुझे ये कौन सा दुख है कभी बताने आ बड़ा सुकून मिलेगा तुझे यहाँ आ कर जो हो सके तो कभी मेरे दिल में रहने आ दहकता शो'ला सा मैं एक दश्त हूँ 'पाशी' अगर घटा है तू सावन की तो बरसने आ