मसर्रत चीज़ क्या है रंज क्या है ये सारा खेल इक एहसास का है बहार-ए-ज़िंदगी कहते हैं जिस को किसी के इक तबस्सुम की ज़िया है ख़ता-ए-बेवफ़ाई और हम से यक़ीनन आप को धोका हुआ है अभी बदली नहीं इंसाँ की फ़ितरत ये अब भी दुश्मन-ए-मेहर-ओ-वफ़ा है किसी के जौर का हद से गुज़रना हमारी ख़ामुशी की इंतिहा है किसी की बज़्म तक हो क्या रसाई मुक़द्दर ही हमारा ना-रसा है उसे क्या वास्ता दैर-ओ-हरम से वो जिस ने राज़-ए-उल्फ़त पा लिया है हज़ारों राहतें उस पर निछावर तुम्हारा ग़म जिसे रास आ गया है कभी सुनते नहीं हैं आप वर्ना हमारे दिल में भी इक मुद्दआ' है मैं उन को पूजता हूँ जाँ से दिल से वो जिन के दिल में एहसास-ए-वफ़ा है तलातुम-ख़ेज़ मौजों से गुज़र जा लब-ए-साहिल खड़ा क्या सोचता है हमें मुतलक़ नहीं एहसास 'आसी' हमारी ज़िंदगी बे-आसरा है