हुई ईजाद नई तर्ज़-ए-ख़ुशामद कि नहीं कल का आईन है अब तक सर-ए-मसनद कि नहीं आ गई ऐ मिरे साए से भी बचने वाली रफ़्ता रफ़्ता तिरे इक़रार की सरहद कि नहीं नहर-ए-ख़ूँ हो चुकी, फ़रहाद की मज़दूरी को अब के तेशे से मिली क़ीमत-ए-सा'अद कि नहीं नासेहा इस लिए मैं गोश-बर-आवाज़ न था तिरी आवाज़ से छोटा है तिरा क़द कि नहीं