हुए जो क़त्ल उन का है वही ग़म-ख़्वार बोलेगा मज़े की बात है क़ातिल की जय-जय-कार बोलेगा तबीअ'त हो कि निय्यत हो हक़ीक़त होगी ज़ाहिर ही तिरी ख़ामोशियों में भी तिरा किरदार बोलेगा सितम-गर ने जो करना था किया लेकिन सितम ये है मिरे दिल को यक़ीं था कि कोई ग़म-ख़्वार बोलेगा कहानी ज़िंदगी की एक दरिया की हक़ीक़त है किनारे कुछ नहीं कहते मगर मझधार बोलेगा छुपाए लाख तू इस को है ऐसी रौशनी ये तो तिरी आँखों से चमकेगी तिरा इंकार बोलेगा नहीं बोलेंगे हम लेकिन हमारी बात बोलेगी जिसे है बोलने की लत वही हर बार बोलेगा पता सब को है लाचारी ग़रीबी का मुक़द्दर है सवेरे देखना क्या क्या मगर अख़बार बोलेगा है गुल का क्या हैं इस के तो ठिकाने सौ 'सलिल’ साहब कभी गर आँच आई तो चमन का ख़ार बोलेगा