बात बिगड़ी हुई बनी है अभी इक नया रब्त-ए-बाहमी है अभी मुझ को ऐसा गुमान होता है ना-मुकम्मल सी ज़िंदगी है अभी बावजूदे हज़ार नाकामी ज़िंदगी में हमाहमी है अभी एक बिजली सी है जो रह रह कर गोशा-ए-दिल में कौंदती है अभी शौक़ से आओ क़ाफ़िले वालो राह-ए-मंज़िल बुला रही है अभी यूँ तो तुम भी उदास उदास से हो आँख मेरी भी शबनमी है अभी ज़िंदगी की तलाश में हूँ मैं ज़िंदगी मुझ को ढूँढती है अभी नज़रिया एक सा नहीं रहता अक़्ल और दिल में दुश्मनी है अभी ख़ाक डाला किए अदू हर दम फिर भी उर्दू में शुस्तगी है अभी तुम ग़ज़ल को निखार लो 'गौहर' चाँद तारों में रौशनी है अभी