हुजूम-ए-दर्द में ख़ंदाँ है कौन मेरे सिवा हरीफ़-ए-गर्दिश-ए-दौराँ है कौन मेरे सिवा दवा-ए-दिल के लिए अपने पास आया हूँ कि मेरे दर्द का दरमाँ है कौन मेरे सिवा ये हम-सफ़र तो चमन तक के हम-सफ़र ठहरे मिरा रफ़ीक़-ए-बयाबाँ है कौन मेरे सिवा सितारा-ए-शब-ए-ग़म किस पे मुस्कुराएँगे फ़रेब-ख़ुर्दा-ए-पैमाँ है कौन मेरे सिवा वो आदमी ही तो इंसानियत का दुश्मन है जो कह रहा है कि इंसाँ है कौन मेरे सिवा पुकारती हैं मुझी को तमाम ज़ंजीरें ज़बान-ए-हल्क़ा-ए-ज़िंदाँ है कौन मेरे सिवा मिरा पता तो किसी गुल से पूछ लो कि 'शमीम' चमन में चाक-गरेबाँ है कौन मेरे सिवा