हम आज बज़्म-ए-रक़ीबाँ से सुर्ख़-रू आए ये है अजीब कि अब वो भी हू-ब-हू आए है कौन याँ जो नहीं जाम-ओ-मय का शैदाई ये कब हो आप ही चल कर कहीं सुबू आए सभी ने जान दी तेरी गली में ऐ हमदम किसे मजाल कि अब तेरे रू-ब-रू आए तिरे फ़िराक़ में हम ने बहाए अश्क-ए-जिगर ये सब ने चाहा मगर आए तो लहू आए है अब कहाँ वो वफ़ा और वो वफ़ा-केशी वो और वक़्त था हम देख कू-ब-कू आए