हम आज-कल हैं नामा-नवीसी की ताव पर दिन-भर कबूतरों को भगाते हैं बाव पर रिंदों को एक रोज़ तो दरिया-दिली दिखा कश्ती-ए-मय को छोड़ दे साक़ी बहाओ पर लिक्खूँ वो शे'र-ए-आरिज़-ए-रंगीं की वस्फ़-बीं तख़्ता चमन का सदक़े हों काग़ज़ की नाव पर कुछ हाजत-ए-कबाब नहीं कैफ़-ए-इश्क़ में सीख़ें दिल-ओ-जिगर की लगीं हैं अलाव पर बे-मिन्नत-ए-जहान-ए-तुनुक-ज़र्फ़ अगर मिले वल्लाह फिर तो चर्ब है ख़ुशका पुलाव पर क़ाने की मुँह से ने'मत-ए-दुनिया ख़फ़ीफ़ है भारी है पाव नान पर मिरी नान पाव पर आफ़त-निशाँ हैं दीदा-ए-फ़त्ताँ की पुतलियाँ तश्हीर सामरी को करेंगे ये गाव पर बाज़ीचा-गाह-ए-इश्क़ में वो हूँ क़िमार-बाज़ दोनों जहान रख दिए हैं एक दाव पर क्यूँ कर बरातियों से न घूँघट करे दुल्हन सारी सभा मिटी है तुम्हारे बनाव पर गुल-गश्त की हवस चमनिस्ताँ की आरज़ू ऐ बे-क़रारियो मिरे दिल को लगाव पर करता हूँ मैं जो मरहम-ए-काफ़ूर की तलाश करती है चाँदनी मिरी सीने के घाव पर कश्ती-ए-मय लगी रही साक़ी लबों के घाट हम मय-कशों का क़ाफ़िला है चल-चलाव पर मैं जल में आ गया वो न आया फ़रेब में मैं ज़द पे चढ़ गया वो न ठेरा लगाव पर परवाने की तरह न बुझा दे चराग़-ए-हुस्न तूती-ए-ख़त के आतिश-ए-रुख़ से जलाओ पर इल्म-ए-सफ़ीना उस को तुझे इल्म-ए-सीना 'बहर' तू पुल पर और शैख़ है काग़ज़ की नाव पर