हम अब जज़्बात-ओ-एहसासात से ये काम लेते हैं किसी के चोट आए हम कलेजा थाम लेते हैं मुसलसल रोज़-ओ-शब की गर्दिशों से काम लेते हैं सुकून-ए-सुब्ह से हम इज़्तिराब-ए-शाम लेते हैं समझते हैं अदा-ए-शुक्र को ही कैफ़-ओ-सरमस्ती तही मय-ख़ाना-ए-फ़ितरत से जब हम जाम लेते हैं सितम बे-फ़िक्र हो कर बंदा-पर्वर कीजिए हम पर हम अपनी ज़ात पर हर बात का इल्ज़ाम लेते हैं किया करते हैं क़ाएम सुर्ख़ियाँ रूदाद-ए-उल्फ़त की मिरे आँसू मिरे ज़ख़्मी जिगर से काम लेते हैं क़यामत फिर बपा होने लगी शौक़-ए-शहादत में वो अपने हाथ में फिर तेग़-ए-ख़ूँ-आशाम लेते हैं मोहब्बत है ख़याल-ए-ख़ाम लेकिन तेरे दीवाने जुनूँ में रात दिन लुत्फ़-ए-ख़याल-ए-ख़ाम लेते हैं ये उल्फ़त है वो सौदा जिस में यूँही होती आई है हमेशा दिल जो देते हैं ग़म-ओ-आलाम लेते हैं उमीदें सख़्त-जानी बन गई हैं वर्ना ऐ 'नामी' हम अपनी मौत से पैग़ाम पर पैग़ाम लेते हैं