हर एक शय में निहाँ रूह-ए-जुस्तुजू तुम हो हमारे दर्द भरे दिल की आरज़ू तुम हो मिरे जुनूँ ने गरेबाँ को चाक कर के उन्हें कहा इशारों में सामान-ए-सद-रफ़ू तुम हो जिधर निगाह गई तुम उधर नज़र आए तुम्हारे जल्वे हैं हर शय में चार सू तुम हो कहेगी लाख में मेरी निगाह आलम में ज़माने भर के हसीनों में ख़ूब-रू तुम हो चटक के कहते हैं तुम से ये ग़ुंचा-हा-ए-चमन हमारा हुस्न-ए-दिल-आवेज़ रंग-ओ-बू तुम हो चले हो सामना उस बर्क़-वश का करने को सँभल के होना जो 'मंज़ूर' रू-ब-रू तुम हो