हम दूर दूर हो के भी होते हैं आस-पास पाते दयार-ए-ग़ैर में खोते हैं आस-पास है बे-ख़ुदी कि तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ न पूछियो तन्हाई के गज़ीदा हैं होते हैं आस-पास कोई नहीं है शहर-ए-ख़मोशाँ में यार-दोस्त सब अपने आप हँसते हैं रोते हैं आस-पास क्या कीजिए निफ़ाक़-ओ-हसद कीना-पर्वरी करते कशीद हैं कहीं बोते हैं आस-पास दिल के तअ'ल्लुक़ात हैं दिल के तअ'ल्लुक़ात याँ दिल से ग़ैर ग़ैर भी सोते हैं आस-पास है मैल सब जहाँ का हुआ उस तरफ़ ही जम्अ जो कुछ भी गर्द-ए-राह है धोते हैं आस-पास