हुस्न-ए-तख़ईल का पैकर ठहरा जो मिरे दर्द का महवर ठहरा रंग दिखलाए हवाओं ने बहुत शौक़ ज़ख़्मों का पयम्बर ठहरा जाने किस घर में जली हैं शमएँ जाने वो किस का मुक़द्दर ठहरा कौन एहसास की तह तक पहुँचे कौन इस दश्त का सरवर ठहरा मैं सितारों की क़बा पहनूँगा तू अगर शाम का मंज़र ठहरा लोग घबराए हुए फिरते हैं कौन इस दौर का रहबर ठहरा 'काज़मी' सब्र ओ वफ़ा का शाइ'र गोया ख़्वाबों का समुंदर ठहरा