हम गधे को गधा समझते हैं वो हमें जाने क्या समझते हैं रह-ज़नो इस तरह से काम करो सब मुझे रहनुमा समझते हैं जिन को ग़ोते न लग सके वो लोग नाख़ुदा को ख़ुदा समझते हैं ज़िंदगी भर की कोशिशों का हुसूल वो मिरा मुद्दआ' समझते हैं लोग कहते हैं बेवफ़ा मुझ को और तुम्हें बा-वफ़ा समझते हैं चीख़ते क्यों हो हज़रत-ए-नासेह हम तुम्हारा कहा समझते हैं ये किसी भेड़िये के पंजे हैं हम तिरे नक़्श-ए-पा समझते हैं ग़ैर से उन का रब्त भी समझें जो उन्हें बेवफ़ा समझते हैं उन की आँखें जो तेरी आँखों को कुछ नहीं मै-कदा समझते हैं मैं हूँ औलाद की जगह 'उस्ताद' जाने ये लोग क्या समझते हैं