हम हद-ए-इंदिमाल से भी गए अब फ़रेब-ए-ख़याल से भी गए दिल पे ताला ज़बान पर पहरा यानी अब अर्ज़-ए-हाल से भी गए जाम-ए-जम की तलाश ले डूबी अपने जाम-ए-सिफ़ाल से भी गए ख़ौफ़-ए-कम-माएगी बुरा हो तिरा आरज़ू-ए-विसाल से भी गए शोरिश-ए-ज़िंदगी तमाम हुई गर्दिश-ए-माह-ओ-साल से भी गए यूँ मिटे हम कि अब ज़वाल नहीं शौक़-ए-औज-ए-कमाल से भी गए हम ने चाहा था तेरी चाल चलें हाए हम अपनी चाल से भी गए हुस्न-ए-फ़र्दा ख़याल-ओ-ख़्वाब रहा और माज़ी ओ हाल से भी गए हम तही-दस्त वक़्फ़-ए-ग़म हैं वही तंग-ना-ए-सवाल से भी गए सज्दा भी 'अर्श' उन को कर देखा इस रह-ए-पाएमाल से भी गए