हम कभी चश्म-ए-ज़माना में न पिन्हाँ होंगे हम हर इक दौर में हर दिल में नुमायाँ होंगे दर्द बन कर नफ़स-ए-जाँ में समा जाएँगे सोज़ बन कर हरम-ए-दिल में फ़रोज़ाँ होंगे हम ख़िज़ाँ हो के भी हैं रौनक-ए-बज़्म-ए-आलम हम न होंगे तो कहाँ जश्न-ए-बहाराँ होंगे हम जलेंगे कि तिरे नाम की लो रौशन हो हम ब-हर-रंग तिरी ज़ीस्त का सामाँ होंगे सोज़िश-ए-दर्द में है 'अर्श' क़यामत पिन्हाँ वो भी क्या होंगे जो इस दर्द का दरमाँ होंगे