हम हैं और शुग़्ल-ए-इश्क़-बाज़ी है क्या हक़ीक़ी है क्या मजाज़ी है दुख़्तर-ए-रज़ निकल के मीना से करती क्या क्या ज़बाँ-दराज़ी है ख़त को क्या देखते हो आइने में हुस्न की ये अदा-तराज़ी है हिन्दू-ए-चश्म ताक़-ए-अबरू में क्या बना आन कर नमाज़ी है नज़्र दें नफ़्स-कुश को दुनिया-दार वाह क्या तेरी बे-नियाज़ी है बुत-ए-तन्नाज़ हम से हो ना-साज़ कारसाज़ों की कारसाज़ी है सच कहा है किसी ने ये ऐ 'ज़ौक़' माल-ए-मूज़ी नसीब-ए-ग़ाज़ी है