हम ही ने सीख लिया रहगुज़र को घर करना वगर्ना उस की तो आदत है दर-ब-दर करना न अपनी राह थी कोई न कोई मंज़िल थी तभी तो चाहा था तुझ को ही हम-सफ़र करना थीं गरचे गिर्द मिरे ख़ामुशी की दीवारें तुम्हारे वास्ते मुश्किल नहीं था दर करना तुम्हारी तर्क-ओ-तलब जिस्म-ओ-रूह की उलझन हमें भी आ न सका ख़ुद को मो'तबर करना तिरी निगाह-ए-तग़ाफ़ुल-शिआ'र के सदक़े हमें भी आ ही गया है गुज़र-बसर करना जो अब के दर्द उठा दिल में आख़िरी होगा जो हो सके तो उसे मेरा चारागर करना मैं चूर चूर हूँ देखो बिखर न जाऊँ कहीं मिरी दुआओं को इतना न बे-असर करना बहार आई है इस बार कुछ लिखें हम भी सिखाओ हम को भी इस दर्द को शजर करना