हम हो गए शहीद ये एज़ाज़ तो मिला अहल-ए-जुनूँ को नुक्ता-ए-आग़ाज़ तो मिला हम को जो सन रहा है वो मुख़्बिर सही मगर महफ़िल में कोई गोश-बर-आवाज़ तो मिला वो कारवान-ए-शब का हुआ आख़िरी चराग़ लो शैख़ को ये मंसब-ए-मुम्ताज़ तो मिला हम औलिया नहीं थे जो दिल फेरते मगर उस को भी गुफ़्तुगू का इक अंदाज़ तो मिला हम ख़ुद ही बे-सुरे थे क़सीदा न पढ़ सके इस बज़्म में इशारा-ए-आवाज़ तो मिला ख़ालिद ये रंग-ए-शहर न था हम से पेशतर सद-शुक्र करगसों को कोई बाज़ तो मिला