हम ज़र्रे हैं ख़ाक-ए-रहगुज़र के देखो हमें बाम से उतर के चुप हो गए यूँ असीर जैसे झगड़े थे तमाम बाल-ओ-पर के वा'दा न दिलाओ याद उन का नादिम हूँ ख़ुद ए'तिबार कर के ऐ बाद-ए-सहर न छेड़ हम को हम जागे हुए हैं रात-भर के शबनम की तरह हयात के ख़्वाब कुछ और निखर गए बिखर के जब उन को ख़याल-ए-वज़्अ' आया अंदाज़ बदल गए नज़र के यूँ मौत के मुंतज़िर हैं 'बाक़ी' मिल जाएगा चैन जैसे मर के