हम जो घबराएँ ज़माने से तो घर जाते हैं जिन के घर ही नहीं होते वो किधर जाते हैं सारी बातों की है इक बात कि कुछ बातों से दिल में उतरे हुए भी दिल से उतर जाते हैं दा'वे करते हैं वही लोग जो कुछ करते नहीं जिन को करना हो वो कहते नहीं कर जाते हैं हम को है नाज़ बहुत ज़ब्त पे अपने लेकिन दिल अगर टूटे तो फिर अश्क बिफर जाते हैं सूरत-ए-हाल ने सूरत ही बदल के रख दी लोग हैरान से तकते हैं जिधर जाते हैं हम तो वो हैं कि अगर बहर-ए-सजल में उतरें नाव जिस रुख़ हो तआ'क़ुब में भँवर जाते हैं ज़िंदगी मौत के पहलू में सिमट जाएगी जब भी ये सोचते हैं सोच के मर जाते हैं