कट गई ज़िंदगी तज़ब्ज़ुब में कुछ अगर कुछ मगर के बीच कहीं न मुसलमाँ हुए न कुफ़्र किया रह गए ख़ैर-ओ-शर के बीच कहीं दर कहाँ है कहाँ हैं दीवारें खो गए अपने घर के बीच कहीं बात बाहर निकल ही जाती है कोई रौज़न है दर के बीच कहीं मुझ को मंज़िल से दूर करते गए नए रस्ते सफ़र के बीच कहीं सीप तक रास्ता बना लेगा एक क़तरा लहर के बीच कहीं उन का घर याद है तो बस इतना इक गली है शहर के बीच कहीं हर कहानी में इक कहानी है इक ख़बर है ख़बर के बीच कहीं