हम ख़ाक-नशीनों को राहत का उजाला दे कब हम ने कहा तुझ से सोने का निवाला दे रहने को हवेली है शोहरत भी मिली लेकिन किरदार भी कुछ तुझ को अल्लाह-तआला दे अब ऐसी मोहब्बत से दिल कौन लगाता है जो ज़ख़्म जिगर में दे और पाँव में छाला दे क्या उठ गई दुनिया से हर रस्म-ए-वफ़ा या रब कहता है ये दीवाना इक चाहने वाला दे ऐ यार मिरी चाहत और ज़र्फ़ को क्या जाने पी लूँ तिरे हाथों से गर ज़हर का प्याला दे अपना हो कि दुश्मन हो ये 'ताज' न देखा कर हर शख़्स को ख़ुश हो कर अख़्लाक़ निराला दे