ज़िंदगी की राहतों से मावरा हो जाएगा इक लिबास-ए-बे-ख़ुदी जिस को अता हो जाएगा अहल-ए-दुनिया एक दिन वो वक़्त आएगा ज़रूर ये तमन्ना का जहाँ यक-दम फ़ना हो जाएगा इक तअल्लुक़ है बका-ए-ज़ात का ज़ामिन यहाँ फूल टहनी से गिरेगा तो फ़ना हो जाएगा टूट जाएगा ये चर्ख़ा जिस्म का चलते हुए और क़ैदी क़ैद से आख़िर रिहा हो जाएगा शब की तारीकी से जैसे फूटती है सुब्ह-ए-नौ दर्द जब हद से बढ़ेगा तो दवा हो जाएगा गर यही आलम रहा अक़दार की तस्ख़ीर का हर बुरा अच्छा तो हर अच्छा बुरा हो जाएगा 'ताज' कह गुज़रेंगे उस से जो हमारे दिल में है बस ख़फ़ा हो जाएगा ना और क्या हो जाएगा